hindisamay head


अ+ अ-

कविता

रात भर

नरेश सक्सेना


रात भर चलती हैं रेलें
ट्रक ढोते हैं माल रात भर
कारखाने चलते हैं

कामगार रहते हैं बेहोश
होशमंद करवटें बदलते हैं रात भर
अपराधी सोते हैं
अपराधों का कोई संबंध अब
अँधेरे से नहीं रहा

सुबह सभी दफ्तर खुलते हैं अपराध के।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में नरेश सक्सेना की रचनाएँ